गंगा अष्टक माँ गंगा का वर्णन इसकी रचना महाकवि कालिदास जी ने की हैं। हमारे हिन्दू धर्म ( भारत) में गंगा नदी को माँ का उपाधि दिया गया हैं। ऋग्वेद वेद में गंगा नदी का सम्पूर्ण वर्णन किया गया हैं। गंगा नदी में स्नान करने मात्र से व्यक्ति के पाप नष्ट हो जाते हैं । धर्मशास्त्रों के के अनुसार गंगाष्टकम् का नियमित रूप से पाठ करने से व्यक्ति के सारे पाप नष्ट हो जाते है और गंगा माँ की विशेष कृपा बनी रहती हैं। उसकी बुद्घि निर्मल हो जाती हैं और जीवन समाप्त होने के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती हैं।
अद्भुत माँ गंगा अष्टकम् : Ganga Ashtakam Stotram स्तोत्रम्
नमस्तेSस्तु गङ्गै त्वदङ्गप्रसङ्गाद् भुजंङ्गस्तुरङ्गा: कुरङ्गा: प्लङ्गा:।
अनङ्गारिरङ्गा: ससङ्गा: शिवाङ्गा भुजाङ्गाधिपाङ्गीकृताङ्गा भवन्ति।।१।।
नमो जह्नुकन्ये न मन्यै त्वदन्यैर्निसर्गेन्दुचिन्हादिभिर्लोक भर्तु: ।
अतोSहं नयोहं सतो गौरतोये वशिष्ठादिभिर्गीयमानाभिधेये॥२॥
त्वदामज्जनात् सज्जनोदुर्जनो वा,विमानै: समानःसमानैर्हि मानै:।
समायाति तस्मिन् पुरारातिलोके, पुरद्वार-संरूद्ध-दिक्पाल लोके ।।३।।
स्वरावास दम्भोलि दम्भोSपिरम्भा,परीरम्भ-सम्भा वना धीर चेता: ।
समाकांक्षते त्वत्तटे वृक्षवाटीकौटीरे वसन्नर्तुमायुर्दिनानि ॥४॥
त्रिलोकस्य भर्तुर्जटाजुटबन्धनात्, स्वसीमान्तभागे मनाक्प्रस्ख लन्तः ।
भवान्या रूषा प्रौढसापत्न-भावात्, करेणाहतास्त्वत्तरङ्गा जयन्ति ॥५॥
जलोन्मज्जदैरावतोदानकुम्भ-स्फुरत्-प्रस्खलन्-सान्द्रसिन्दूररागे ।
क्वचित् पद्मिनीरेणुभङ्गे प्रसङ्गे, मनःखेलतां जह्नुकन्यातरङ्गे ॥६॥
भवत्तीर-वानीर-वातोत्थधुली-स्पर्शतस्तत्क्षणं क्षीणपापः ।
जनोSयं जगत्पावने त्वत्प्रसादात्, पदे पौरूहूतेSपि धतेSवहेलाम् ॥७॥
त्रिसन्ध्यानमल्लेखकोटीर नानाविधानैक रत्नांशुबिम्बप्रभाभिः।
स्फुरत्पादपीठे हठेनाष्टमूर्ते, र्जटाजूटवासे नताः स्मः पदं ते ॥८॥
इदं यःपठेदष्टकं जह्नुपुत्र्यास्त्रिकालं, कृतं कालिदासेन रम्यम् ।समायास्यतीन्द्रादिभिर्गीयमानं, पदं केशवं शैशवं न लभेत् सः ॥९॥
इति श्रीकालिदाशकृतं गङ्गाष्टकस्तोत्रं सम्पूर्णम्