पञ्चलोकपाल पूजा मंत्र - Panch Lokpal Pujan
नवग्रह मण्डल में ही क्रमश: केतू के पास गणेशजी और दुर्गाजी का तथा बृहस्पति के पास वायु, आकाश और अश्विनीकुमारों का आवाहन और स्थापन कर पूजन करें ।
पञ्चलोकपाल पूजन आवाह्न मंत्र सहित |
पंच लोकपाल में स्थापना स्थान के बारे में मतभेद है। एक मत में कहा है कि शनै: केतोश्च पूर्वेण, गुरोः सूर्यस्य पश्चिमे अन्य मत से राहु के उत्तर में गणपति तथा राहु के दक्षिण में अंतरिक्ष, शनि के उत्तर में दुर्गा, रवि के उत्तर में वायु, केतु के दक्षिण में अश्विन का स्थान कहा है।
अब मिथिलापूजा (पूजापाठ) में आप पञ्चलोकपाल पूजा के विषय में पढ़ेंगे । गणेशजी, दुर्गाजी वायु, आकाश और अश्विनीकुमारों को ही पञ्चलोकपाल कहते हैं। इनके उपरांत बुध के पास क्रमश: वासतोष्पति व क्षेत्रपाल का आवाहन-स्थापन कर पूजन करें ।
बायें हाथ में अक्षत लेकर दाहिने हाथ से छोड़ते हुए पञ्चलोकपालों का आवाहन एवं स्थापन करें ।
1-गणेशजी का आवाहन और स्थापन। ( केतु के उत्तर में )
ॐ गणानां त्वा गणपति ँ हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपतिँ हवामहे निधीनां त्वा निधिपतिँ हवामहे वसो मम । आहमजानि गर्भधमात्वमजासि गर्भधम् ॥
लम्बोदरं महाकायं गजवक्त्रं चतुर्भुजम् । आवाहयाम्यहं देवं गणेशं सिद्धिदायकम् ॥
ॐ भूभुर्वः स्वः गणपते ! इहागच्छ , इहतिष्ठ गणपतये नमः, गणपतिमावाहयामि स्थापयामि ॥
2۔ दुर्गाजी का आवाहन और स्थापन ( केतु या के उत्तर )
ॐ जातवेदसे सुनवाम सोम मरातीयतो निदहाति वेदः । सनः पर्षदति दुर्गाणि विश्वानावेव सिन्धुं दुरितात्यग्निः ॥
पत्तने नगरे ग्रामे विपिने पर्वते गृहे । नाना जाती कुलेशानीं दुर्गमवाहयाम्याहम् ॥
ॐ भूभुर्वः स्वः दुर्गे ! इहागच्छ , इहतिष्ठ दुर्गायै नमः, दुर्गामावाहयामि स्थापयामि ॥
3- वायु का आवाहन और स्थापन।( गुरु के उत्तर में )
ॐआ नो नियुद्भिः शतिनीभिरध्वर ँ सहस्त्रिणीभिरुप याहि यज्ञम् । वायो अस्मिन्त्सवने मादयस्व यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
आवाहयाम्यहं वायुं भूतानां देहधारिणम् । सर्वाधारं महावेगं मृगवाहनमीश्वरम् ॥
ॐ भूभुर्वः स्वः वायो ! इहागच्छ , इहतिष्ठ वायवे नमः, वायुमावाहयामि स्थापयामि ॥4 ۔ आकाश का आवाहन और स्थापन। ( गुरु के उत्तर में )۔
ॐ घृतं घृतपावानः पिबत वसां वसापावानः पिबतान्त रिक्षस्य हविरसि स्वाहा । दिशः प्रदिश आदिशो विदिश उद्दिशो दिग्भ्यः स्वाहा ॥
अनाकारं शब्दगुणं द्यावाभूम्यन्तरस्थितम् । आवाहयाम्यहं देवमाकाशं सर्वगं शुभम् ॥
ॐ भूभुर्वः स्वः आकाश ! इहागच्छ, इहतिष्ठ आकाशाय नमः, आकाशमावाहयामि स्थापयामि ॥
5 ۔ अश्विनीकुमारों का आवाहन और स्थापन। ( गुरु के उत्तर में )
ॐ या वां कशा मधुमत्यश्विना सुनृतावती । तया यज्ञं मिमिक्षतम् ।
उपयामगृहीतोऽस्यश्विभ्यां त्वैष ते योनिर्माध्वीभ्यां त्वा ॥
देवतानां च भैषज्ये सुकुमारो भिषग्वरौ । आवाहयाम्यहं देवावश्विनौ पुष्टिवर्द्धनौ ॥
ॐ भूभुर्वः स्वः अश्विनौ ! इहागच्छ , इहतिष्ठ अश्विभ्यां नमः, अश्विनावाहयामि स्थापयामि ॥
प्रतिष्ठा –तदनन्तर ‘ॐ मनो० जुति०’ इस मन्त्र से अक्षत छोड़ते हुए पञ्चलोकपाल की प्रतिष्ठा करे ।इसके बाद ‘ पञ्चलोकपालेभ्यो नमः’ इस नाम-मन्त्र से यथालब्धोपचार पूजन कर ‘अनया पूजया पञ्चलोकपालाः प्रीयन्ताम्, न मम’ ऐसा उच्चारण कर अक्षत छोड़ दे ।
वासतोष्पति का आवाहन और स्थापन ۔
ॐ वासतोष्पते प्रतिजानीह्यस्मान्त्स्वावेशो अनमीवो भवा नः । यत् त्वेमहे प्रति तन्नो जुषस्व शं नो भव द्विपदे शं चतुष्पदे ॥
वासतोष्पतिं विदिक्कायं भूशय्याभिरतं प्रभुम् । आवाहयाम्यहं देवं सर्वकर्मफलप्रदम् ॥
ॐ भूभुर्वः स्वः वासतोष्पते ! इहागच्छ , इहतिष्ठ वासतोष्पतये नमः, वासतोष्पतिमावाहयामि स्थापयामि ॥
क्षेत्रपालका आवाहन-स्थापन ۔
ॐ नहि स्पशमविदन्नन्यमस्माद्वैश्वानरात्पुर एतारमग्नेः ।
एमेनमवृधन्नमृता अमर्त्यं वैश्वानरं क्षैत्रजित्याय देवाः ॥
भूतप्रेतपिशाचाद्यैरावृतं शूलपाणिनम् । आवाहये क्षेत्रपालं कर्मण्यस्मिन् सुखाय नः ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः क्षेत्राधिपते । इहागच्छ, इह तिष्ठ क्षेत्राधिपतये नमः, क्षेत्राधिपतिमावाहयामि, स्थापयामि ।
आवाहन-स्थापन उपरांत ‘ॐ मनो जूति०’ इस मन्त्र से प्रतिष्ठाकर ‘ॐ वासतोष्पतिदेवताभ्यो नमः’ ‘ॐ क्षेत्रपालाय नमः’ इस नाम-मन्त्र द्वारा गन्धादि उपचारों से पूजा करे ।
विशेष – वासतोष्पति एवं क्षेत्रपाल देवताओं को नवग्रह मण्डल के ही अंग मान गया हैं। यज्ञादि अनुष्ठानों में वासतोष्पति एवं क्षेत्रपाल देवताओं का अलग-अलग वेदी बनाकर उनकी पूजा का प्रावधान हैं।
नवग्रह मण्डल के परिधि में ही क्रमश: अधिदेवताओं व प्रत्यधि देवताओं का स्थापन का प्रावधान है। इसलिए आने वाले समय में इन सभी देवों का पृथक-पृथक पूजन विधि दिया जाएगा।