ग्रहों के संबंध में अधिदेवता प्रत्यधिदेवता होतें हैं। Adhi Devta-Pratyadhi Devta
अधिदेवता पुष्टिकारक होते हैं, चीजों को सुव्यवस्थित करते हैं और केवल आशीष और कृपा प्रदान करते। वैसे तो अधिदेवता क्रमशः सूर्यादि ग्रहों के दक्ष पार्श्व व प्रत्यधि देवता क्रमशः ग्रहों के वाम भाग में स्थापित करते है परन्तु कहीं-कहीं मतभेद है सो दोनों ही विधान दे रहें है।
अधिदेवता आवाहन मंत्र सहित |
ग्रहों के अधि देवताओं नाम / Graho Ke Adhi Devtao Ka Naam
सूर्य के अधिदेवता भगवान शिव हैं।
चन्द्रमा के अधिदेवता माता पार्वती हैं।
मंगल के अधिदेवता स्कंध हैं।
बुध के अधिदेवता भगवान विष्णु हैं।
वृहस्पति के अधिदेवता परम पिता ब्रह्मा हैं।
शुक्र के अधिदेवता देवराज इंद्र हैं।
शनि के अधिदेवता मृत्यु के स्वामी यम हैं।
राहु के अधिदेवता काल हैं।
केतु ग्रह के अधिदेवता लेखाकार चित्रगुप्त हैं।
अब मिथिलापूजा (पूजापाठ) में सर्व प्रथम अधिदेवता का पूजन और ध्यान आवाह्न जानते हैं। और दूसरे खण्ड में प्रत्यधिदेवता के विषय में पढ़ेंगे।
अथ अधिदेवताऽवाहनम् ( Ath Adhi Devta Aawahan )
शिव 1. (सुर्य के दक्ष पार्व में)
ॐ त्र्यंबकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टि वर्धनम् । उर्वारुक मिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः शंभो इहागच्छ इह तिष्ठ।
उमा 2. (चन्द्रमा के दक्ष या अग्निकोणे दिशि) -
ॐ श्रीश्चते लक्ष्मीश्च पल्या वहोरात्रे पार्श्वे नक्षत्राणि रूपमश्विन्नौ व्यात्तम्। इष्णन्निषाणा मुम्मइषाण सर्वलोकम्मइषाण ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः उमे इहागच्छ इह तिष्ठ।
स्कंद 3. (भौम के दक्षिण भाग में या याम्य भाग में) -
ॐ यदक्रन्दः प्रथमं जायमान उद्यन्त्समुद्रादुतवापुरीषात् । श्येनस्यपक्षा हरिणस्यबाहू उपस्तुत्यं महिजाततंते अर्वन् ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः स्कंद इहागच्छ इह तिष्ठ।
विष्णु 4. (बुधस्य दक्ष पार्वे या बुधस्य पूर्वी -
ॐ विष्णोरराटमसि विष्णोः स्नप्त्रेस्थो विष्णोः स्यूरसि विष्णो ध्रुवोसि वैष्णव मसि विष्णवेत्वा ।
ॐ भूर्भुवः स्वः नारायण इहागच्छ इह तिष्ठ।
ब्रह्मा 5. (गुरु के दक्षिण पार्श्व में) -
ॐ आ ब्रह्मन् ब्रह्मणो ब्रह्मवर्चसी जायतामाराष्ट्रे राजन्यः शूर इषव्योति व्याधी महारथो जायतां दोग्ध्री धेनुर्वोढाऽनड्वानाशुः सप्ति पुरन्धिर्योषा जिष्णू रथेष्ठाः ।
सभेयो युवास्य यजमानस्य वीरो जायतान्निकामे निकामेनः पर्जन्योवर्षतु फलवत्यो न ओषधयः पच्यन्तां योग क्षेमो नः कल्पताम् ।
ॐ भूर्भुवः स्वः ब्रह्मन् इहागच्छ इह तिष्ठ।
इन्द्र 6. (शुक्र के दक्षपार्श्व या पूर्व में) -
ॐ सजोषा इन्द्र सगणो मरुद्भिः सोमपिबवृत्रहा शूर विद्वान जहि शत्रु३रपमृधोनुदस्वाथाभयं कृणुहि विश्वतोनः ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः इन्द्र इहागच्छ इह तिष्ठ।
यम 7. (इनि के दक्ष पार्व या पश्चिम में)
ॐ यमायत्वा मखायत्वा सूर्यस्य त्वा तपसे देवस्त्वा सविता मध्वानक्तु पृथिव्याः स स्पृशस्पाहि अर्चिरसि शोचिरसि तपोसि ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः यमः इहागच्छ इह तिष्ठ।
कालः 8. (राहु के दक्ष पार्श्व में) -
ॐ कार्षिरसि समुद्रस्य त्वाः समापो ऽक्षित्या उन्नयामि ऽअद्भिरग्मतसमोषधीभिरोषधी ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः काल: इहागच्छ इह तिष्ठ ।
चित्रगुप्त 9. (केतु के दक्ष पार्श्व में या नैऋत्य भाग में) -
ॐ चित्रावसो स्वस्तिते पारमशीय ।
ॐ भूर्भुवः स्वः चित्रगुप्त इहागच्छ इह तिष्ठ ।