प्रत्यधिदेवता विघ्नहर्ता होते हैं और दोषों का निवारण करते हैं।
ग्रहो के प्रत्यधिदेवताओं का नाम क्या हैं।
सूर्य के प्रत्यधिदेवता अग्नि देव हैं।
चन्द्रमा के प्रत्यधिदेवता जल हैं।
मंगल के प्रत्यधिदेवता पृथ्वी हैं।
प्रत्यधिदेवता आवाह्न मंत्र |
वृहस्पति के प्रत्यधिदेवता इंद्र हैं।
शुक्र के प्रत्यधिदेवता इंद्राणी हैं।
शनि के प्रत्यधिदेवता प्रजापति हैं।
राहु के प्रत्यधिदेवता सर्प हैं।
केतु के प्रत्यधिदेवता ब्रह्मा हैं।
ग्रहो के प्रत्यधिदेवताओं का आवाह्न मंत्र
बायें हाथ में अक्षत और पुष्प ले ग्रह मंडल में निम्न स्थानों पर आवाह्न करें।
अथ प्रत्यधिदेवतानामाऽवाहनं
अग्नि 1. (सूर्य के वाम भाग में या शिव के आगे) -
ॐ सनः पितेव सूनवेऽग्ने सूपायनोभव। सचस्वानः स्वस्तये ।
(या) अग्निदूत पुरोदधे हव्यवाहमुपब्रुवे। देवाँ २ आसादयादिह ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः अग्नि इहागच्छ इह तिष्ठ ।।
आप 2. (चन्द्रमा के वाम पार्वे या उमाके नैऋत्य में) -
ॐ अपोअद्यान्वचारिष रसेन समसृक्ष्महि । पयस्वानग्नऽआगमंतम्मासऽऽसृजवर्चसा प्रजया च धनेन च ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः आप इहागच्छ इह तिष्ठ।
धराः ३ (मंगल के वामपार्वे या स्कंद के वायुकोण में)
ॐ चिदसि तया देवतयांगिरस्वद् परिचिदसि तया देवतयागिरस्वद् ध्रुवासीद । ध्रुवासीद ।
ॐ भूर्भुवः स्वः धरे इहागच्छ इह तिष्ठ । या श्योनापृथिवी. मंत्रेण।।
विष्णु 4. (बुध के वामपार्वे या नारायण के उत्तर में) -
ॐ इदं विष्णु विचक्रमे त्रेधानिदधेपदम् समूढमस्यपाऽसुरे स्वाहा।
ॐ भूर्भुवः स्वः विष्णो इहागच्छ इह तिष्ठ ।
इन्द्र 5. (गुरु के वामपार्वे या ब्रह्मा के उत्तर में)
ॐ इन्द्र आसान्नेता बृहस्पति दक्षिणा यज्ञः पुरऽएतु सोमः । देवसेना नामभिभंजतीनां जयंतीनां मरुतोयं त्वग्रम् ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः इन्द्र इहागच्छ इह तिष्ठ।
इन्द्राणी 6. (शुक्र के वामपार्वे या इन्द्र के पश्चिम में शुक्र मंडल पर)
ॐ इन्द्रं दैवीर्विशो मरुतोऽनुवर्मानोऽ भवन्यथेन्द्र दैवी विंशो मरुतोऽनुवर्मानोऽभवन् विशोमानुषीश्चानु । एवमिमं वर्मानो यजमानन्दैवीश्च भवंतु ।
ॐ भूर्भुवः स्वः इन्द्राणि इहागच्छ इह तिष्ठ ।
प्रजापति 7. (शनि के वामपार्वे या यम के पश्चिम में) -
ॐ प्रजापतेनत्व देतान्यन्यो विश्वारूपाणि परिताबभूव ।यत्कामास्ते जुहुमस्तन्नो अस्त्वयममुष्य पितासावस्य पिताव्यय स्याम पतयोरयीणाऽस्वाहा । रुद्रयत्ते क्रिविपरन्नाम तस्मिन् हुतमस्य मेष्टमसि स्वाहा ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः प्रजापते इहागच्छ इह तिष्ठ।
पन्नगा 8. (राहु के वामपार्वे या काल के पश्चिम में) -
ॐ नमोस्तु सर्वेभ्यो ये के च पृथिवीमनु । ये अन्तरिक्षे ये दिवितेभ्यः सर्पेभ्यो नमः ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः पन्नगा इहागच्छ इह तिष्ठ।
ब्रह्मा 9. (केतु के वामपार्श्व में या चित्रगुप्त के ईशान में)
ब्रह्मजज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्विसीमतः सुरुचोव्वेनऽआवः । सबुध्न्या उपमाऽअस्य विष्ठा सतश्च योनिमसतश्च विवः ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः ब्रह्मा इहागच्छ इह तिष्ठ ।