मंत्र संग्रह | अर्थ सहित Mantra Sangrah

मंत्र संग्रह

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मंत्र की शक्ति अद्वितीय, अद्भुत और चमत्कारिक रूप से ग्रह दोष और अन्य सभी दोषों का विनाश करती हैं। जो दोष किसी ग्रह रत्न या किसी भी माध्यम से ठीक नहीं होता हैं वह मंत्र की शक्ति के प्रभाव से समाप्त हो जाता हैं। ज्योतिष शास्त्र के अध्ययन अनुसार रत्न केवल शुभ असर देने वाले ग्रहों को बल प्रदान करने लिए किया जाता हैं। अशुभ फल देने वाले ग्रहों के लिए वर्जित हैं। क्योंकि ग्रह रत्न केवल बल प्रदान करता हैं, ग्रहों के स्वभाव में कोई परिवर्तन नहीं लाता हैं। जहा एक ओर शुभदायक ग्रहों को बलशाली होने से लाभ की प्राप्ति होती हैं। वही दूसरी ओर अशुभदायक ग्रहों को बलशाली होने से हानि होती हैं। इसलिए बुरा असर देने वाले ग्रहों के लिए मंत्र की शक्तियों की आवश्यकता हैं रत्नों की नही।

मंत्र संग्रह | अर्थ सहित Mantra Sangrah


शरीर और मन शुद्धि मंत्र

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
यः स्मरेत पुंडरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः॥
ॐ पुनातु पुंडरीकाक्षः ॐ पुनातु पुंडरीकाक्षः
ॐ पुनातु पुंडरीकाक्षः गंगा विष्णु नारायण हरिर्हरि ॥

शिखा बंधन मंत्र

वैसे हिन्दू संस्कृति या परंपरा के अनुसार गायत्री मंत्र द्वारा शिखा बांधी जाती है। लेकिन इस मंत्र के साथ भी शिखा बंधन किया जाता है

ॐ चिद्रूपिणि महामाये, दिव्यतेजः समन्विते।
तिष्ठ देवि शिखामध्ये, तेजोवृद्धिं कुरुष्व मे॥ शिखायै नमः

अर्थ-जो चित्रस्वरूपी महामाया देवी है, जो दिव्य तेजोमयी है, प्रकाशमयी हैं, जो हमें दिव्य तेज प्रदान करती हैं। वह महामाया देवी शिखा के मध्य में निवास करें और तेज में वृद्धि करें।

पृथ्वी ध्यान आवाहन मंत्र

ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवी त्वम् विष्णुना धृता। त्वम् च धारय मां देवी पवित्रं कुरु चासनम्।।

अर्थ-हे पृथ्वी माता ! तुमने जिव जगत को धारण किया हुआ है एवं भगवान विष्णु जी ने आप को धारण किया हुआ है। उसी तरह हे पृथ्वी देवी ! तुम मुझे भी धारण करो एवं मेरे आसन को शुद्ध एवं पवित्र करो।

दिशा रक्षा मंत्र

ऊँ अपसर्पन्तु ते भूता: ये भूता:भूमि संस्थिता:।
ये भूता: बिघ्नकर्तारस्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया॥
अपक्रामन्तु भूतानि पिशाचा: सर्वतो दिशम।
सर्वेषाम विरोधेन पूजा कर्म समारभे॥
इस तरह मंत्र से सम्पूर्ण दिग्रक्षणम् ( दिशा रक्षा विधान पूरा करें।

अर्थ-जो भी अनिष्टकारी जीवात्माएं पृथ्वीपर है वे सब दूर हों, वे अनिष्ट जीवात्माएं जो विघ्न निर्माण करती हैं, वे शिवाज्ञा अनुरूप दूर हों।
जहाँ हम पूजा कर रहे है वहाँ यदि कोई आसुरीशक्तियाँ, मानसिक विकार, भूत बेताल आदि, सभी दिशाओं में हो तो चले जाएं। जिससे पूजा में कोई बाधा उपस्थित न हो।

मंत्र शक्तियों के विशेषताएं एवं प्रभाव

मंत्र शक्तियों के विशेषताएं एवं प्रभाव कैसे काम होता हैं आइये जानते हैं। मंत्र ग्रहों की शक्ति बढ़ाने के साथ ग्रहो के बुरे प्रभाव को भी बदलाता हैं। इसलिए मन्त्रों का प्रयोग जन्म कुण्डली अच्छे और बुरे प्रभाव वाले दोनों तरह के ग्रहों के लिये किया जाता हैं। साधारणत: ग्रहों के लिये मूल मंत्र तथा विशेष हालात में बीज मंत्र का प्रयोग किया जाना चाहिए। मंत्रों के प्रयोग से बहुत ही व्यापक है। इन साधनों का प्रयोग देवी देवताओं की सिद्धि से लेकर विभिन्न असाध्य रोगों के निदान के लिए भी किया जाता है।

नव ग्रहों के वैदिक मंत्र अर्थ सहित

सूर्य मंत्र ↪️आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च। हिरण्ययेन सविता रथेना देवा याति भुवनानि पश्यन्।।

अर्थ:-सूर्य सर्व कृष्ण प्रकाश के साथ वर्तमान मनुष्य व देवों को स्व-स्वस्थान में प्रतिष्ठित करते हुए तथा लोक-लोकान्तरों को देखते हुए अपने सुनहले रथ से संचरण करता है ॥
सबके प्रेरक सूर्यदेव स्वर्णिम रथ में विराजमान होकर अंधकारपूर्ण अंतरिक्ष-पथ में विचरण करते हुए देवों और मानवों को उनके कार्यों में लगाते हुए लोकों का देखते हुए आगे चल रहे हैं।

चंद्र मंत्र ↪️ॐ इमं देवा असपत्नऽ सुवध्वं महते क्षत्राय महते ज्यैष्ठयाय महते जानराज्यायेनद्रस्येन्द्रियाय। इमममुष्य पुत्रममुष्यै पुत्रमस्यै विश एष वोमी राजा सोमोस्मांक ब्राह्मणानाऽ राजा।।

अर्थ:-हे देवसू हविर्भाग् देवो ! तुम इस ( देवदत्त आदि ) यजमान को शत्रु रहित बनाकर महद राज कार्य में प्रेरित करो, महाज्येष्ठत्व के लिए प्रेरित करो, महत् जनराज्य ( प्रजातंत्र ) के लिए प्रेरित करो, इन्द्र के परमोत्कृष्ट बल के लिए प्रेरित करो। यशदत्त व यशश्री आदि के पुत्र इस देवदत्त नामक राजा को इस कुरु पाञ्चाल प्रभृति देशवासियों के आधिपत्य में प्रेरित करो। हे कुरु पाञ्चाल प्रभृति देशवासियो ! यह देवदत्त तुम्हारा राजा होवे परन्तु, हे देशवासियो ! हम ब्राह्मणों का राजा तो यह सोम ( चंद्रमा ) है ॥

मंगल मंत्र ↪️ॐअ॒ग्निर्मूर्धा दि॒वः क॒कुत्पतिः पृथि॒व्या अयम् । अपाऽरेताऽसि जिन्वति ॥

अर्थ:-यह आहवनीयादि वेदिस्थ अग्नि द्युलोक का मूर्धा (शिर- सा श्रेष्ठ ) - सा उन्नत तथा पृथ्वी का स्वामी है । यह जलों के सार पे ( वर्षण ) को प्राणित ( पुष्ट ) करता है ।

आपका मंगल हो, प्रभु कल्याण करे

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