Durga Saptshati Path Sankalp / दुर्गासप्तशती-पाठ संकल्प-विध

दुर्गासप्तशती-पाठ संकल्प

सर्वप्रथम यजमान आचमन-प्राणायाम कर, 'सुमुखश्चै' पढ़कर हाथ में जल, अक्षत, पुष्प एवं द्रव्य लेकर 'ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः' से 'रहस्यत्रय पठनं च करिष्ये' तक संकल्प पढ़कर भूमि पर जल छोड़ दें।

DurgaShapti Sankalp Vidhi
Durga Shapti Sankalp Vidhi


अथ संकल्पः 

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्याऽद्य श्रीब्रह्मणोऽह्नि द्वितीये पराद्धे विष्णुपदे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे युगे कलियुगे कलिप्रथमचरणे भूर्लोके जम्बूदीपे भारतवर्षे भरतखण्डे आर्यावर्तेकदेशे पुण्यप्रदेशे (अविमुक्तवाराणसी-क्षेत्रे, आनन्दवने महाश्मशाने गौरीमुखे त्रिकण्टक- विराजिते भागीरथ्याः पश्चिमभागे) विक्रमशके बौद्धावतारे अमुकनाम- संवत्सरे - श्रीसूर्ये अमुकायने अमुकऋतौ महामाङ्गल्यप्रद-मासोत्तमे मासे अमुकमासे (मास का नाम) अमुकपक्षे (पक्ष का नाम) अमुकतिथौ (तिथि का नाम) अमुकवासरे (दिन का नाम) अमुकनक्षत्रे (नक्षत्र का नाम) अमुकयोगे (योग का नाम) अमुककरणे (करण का नाम) अमुक-राशिस्थिते चन्द्रे (जिस राशि में चंद्र उपस्थित हो) अमुकराशिस्थिते श्रीसूर्ये (जिस राशि में सूर्य उपस्थित हो) अमुकराशि- स्थिते (जिस राशि में देव गुरु उपस्थित हो) देवगुरौ शेषेषु ग्रहेषु यथायथा-राशिस्थान-स्थितेषु (जिस-2 राशि में सभी ग्रह उपस्थित हो) सत्सु एवं ग्रहगुणगण-विशेषण-विशिष्टायां शुभपुण्य- वेलायाम् मम आत्मनः श्रुति- स्मृति-पुराणोक्तफल-प्राप्त्यर्थम् अमुकगोत्रोत्पन्नः अमुकशर्माऽहम्  (यजमान अपना नाम और गोत्र बोले) आयुरारोग्यैश्वर्याऽभिवृद्धयर्थ पुत्र- पौत्राद्यनवच्छिन्न-सन्तति-वृद्धि-अप्राप्त लक्ष्मी प्राप्त्यर्थं स्थिरलक्ष्मी कीर्ति लाभ-शत्रुपराजय-सदभीष्ट-सिद्ध्यर्थ सकल दुरितोप शमनार्थे मम सभार्यास्य स बांधवस्य अखिल कुटुम्ब अखिल ग्राम जनानां सहितस्य समस्त भय व्याधि जरा पीडा मृत्यु परिहार द्वारा आयुरारोग्यै श्वर्याभिवृद्धयर्थ परमंत्र परतंत्र परयंत्र परकृत्या प्रयोग छेदनार्थद्वारा सुख शान्ति प्राप्त्यर्थं श्रीमहाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वती-त्रिगुणात्मिका- पराम्बाजगदम्बा प्रीत्यर्थं च "मार्कण्डेय उवाच" इत्यारभ्य "सावर्णिर्भविता मनुः" इत्यन्तं सप्तशतीपाठं (अमुकमन्त्रेण प्रतिमन्त्रसम्पुटितं) तत्राऽऽदौ कवचाऽर्गला- कीलकमाद्यन्तयोर्नवार्ण मन्त्रजपपुरस्सरं क्रमेण रात्रिसूक्त- देवीसूक्तपठन मन्त्रे रहस्यत्रय पठनं च करिष्ये ।

गन्धाऽक्षत पुष्प लेकर पुस्तक का पूजन करें। 

नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम्।।

पुस्तक पूजा- उसके बाद 'नमो देव्यै०' श्लोक पढ़ कर गन्ध, अक्षत तथा पुष्प से पुस्तक का पूजन करें। पश्चात् देवी-कवच, अर्गला एवं कीलक आदि का पाठ करें।

आपका मंगल हो, प्रभु कल्याण करे

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