शिशुबोध:

 मंगलाचरणम्

भास्करञ्च प्रणम्याऽऽदौ शङ्करञ्च गजाननम् । 
करोमि बालबोधय शिशुबोधविस्तरम् ॥१॥ 

(शिशुबोध:)

पञ्चा्गज्योतिषा पूर्णः सङ्ग्रहोऽयं विराजते । 
कल्पतां शिशुबोधाय शिशुबोध: सदा भुवी। 

अन्वयः-आदौ भास्करं, गजाननं शङ्करञ्च प्रमम्य बालबोधाय अविस्तरं शिशुबोधं करोमि ॥ १ ॥

(दैवज्ञ कलाधर शर्मा) द्वारा रचित संग्रहित शिशुबोध-

तिथयः (शिशुबोध:)

(प्रतिपदा), द्वितीय, अतृता, चौथ (चौथी), पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, योदशी, चतुर्दशी, पंचदशी (पूर्णिमा, मावस्या) (कृष्णपक्षेमावस्या शुक्ल पक्षे तु पूर्णिमा )।

हिन्दी - प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पञ्चमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा ( शुक्लपक्ष में ) अथवा अमावस्या ( कृष्णपक्ष में ), ये १५ तिथियाँ होती हैं।

बक्तव्य- ऊपर गद्य में दिये गये कतिपय नाम मिथिला भाषा के हैं।

दिनो का नाम | (शिशुबोध:)

रविश्चन्द्रः कुजश्चैव बुधश्चैव बृहस्पतिः ।
तथा शुक्र: शनिश्चैव वारनामाभिधीयते ॥२॥

अन्वयःरविः चन्द्रः कुजः बुधः बृहस्पतिः तथाशुक्रशनिः च वारनाम अभिधीयते॥२॥

हिन्दी - रवि, सोम, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र और शनि – ये ७ वार होते हैं ॥२॥

नक्षत्र नामानि (शिशुबोध:)

अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाती, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढा, उत्तराषाढा, ( अभिजित् ), श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपदा, उत्तरा भाद्रपदा, रेवती ।

अश्विनी से लेकर रेवती तक २७ नक्षत्र होते हैं, कहीं-कहीं २८वें नक्षत्र अभिजित् का भी प्रयोग देखा जाता है। इसकी उत्पत्ति उत्तराषाढा तथा श्रवण के योग से होती है।

योग-नामानि (शिशुबोध:)

विष्कुम्भ: प्रीतिरायुष्मां सौभाग्यः शोभनस्तथा। 
अती   गण्ड:   सुकर्मा च  धृतिः शूलस्तथै च ॥ ३ ॥ 
गण्डो   वृद्धिर्धुवश्चैव   व्याधोतो    हर्षणस्तथा। 
वज्रः  सिद्धिर्व्यतीपातो  वरीयान् परिघः शिवः। 
सिद्धिः साध्यः शुभः शुक्लो ब्रह्मैन्द्रो वैधृति: क्रमात्॥ ४॥

अन्वयः - नात्र किमपि विशेषोन्वये।
हिन्दी-विष्कुम्भ, प्रीति, आयुष्मान्, सौभाग्य, शोभन, अतिगण्ड, सुकर्मा, धृति, न, शूल, गण्ड, वृद्धि, ध्रुव, व्याघात, हर्षण, वज्र, सिद्धि, व्यतीपात, वरीयान्, परिघ, शिव, सिद्धि, साध्य, शुभ, शुक्ल, ब्रह्म, ऐन्द्र और वैधृति ये क्रम से २७ योग होते हैं ।। ३-४ ।।

करण-नामानि (शिशुबोध:)

ववाह्वयं बालवकौलवाख्ये ततो भवेत्तैतिल  नामधेयम् ।
गराभिधानं वणिजश्च विष्टिरित्याहुरार्य्याः करणानि सप्त ॥ ५ ॥

अन्वयः- बवाह्वयं बालवकौलवाख्ये ततः तैतिलनामधेयं भवेत्।
गराभिधानं वणिजं विष्टिः च इति सप्तकरणानि आर्या: आहुः ।। ५ ।।

हिन्दी- वव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज और विष्टिये ७ करण ज्योतिषशास्त्र के आचार्यों ने कहे हैं ॥ ५ ॥


स्थिरीकरणानि(शिशुबोध:)

चतुर्दशी या शशिना प्रहीणा तदर्द्धभागे शकुनिर्द्वितीये ।
दर्शार्द्धयोस्तश्चतुरङ्घ्रिनागौ किंस्तुघ्नमाद्ये प्रतिपद्दले च ।।६।।

अन्वयः - शशिना प्रहीणा या चतुर्दशी कृष्णपक्षीया द्वितीये तदर्धभागे शकुनिः स्यात् । दर्शार्द्धयोर्भागयोः क्रमेण चतुरङ्घिनागौ करणी स्तः । आद्ये प्रतिपहले किंस्तुघ्नं स्यात् ।। ६ ।।

हिन्दी-कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि के उत्तरार्ध में शकुनि करण, अमा
वास्या के पूर्वाधं में चतुष्पद ( चतुरंघ्रि ) और उत्तरार्ध में नाग तथा प्रतिपदा के पूर्वार्ध में किस्तुघ्न करण होता है। ये चार स्थिर कहे गये हैं, क्योंकि इनका परिवर्तन नहीं होता ।। ६ ।।

राशय: (शिशुबोध:)

मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ, मीन । 

हिन्दी-मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ और मीन-ये १२ राशियाँ होती हैं।
  • चू-चे-चो-ला अश्विनी, 
  • ली-लू-लो-लो भरणी, 
  • अ-इ-उ-ए कृत्तिका, 
  • ओ-वा-वी-वू रोहिणी, 
  • वे-वो-का-की मृगशिरा, 
  • कु-घ-ङ-छ आद्रा, 
  • के-को-ह-हि पुनर्वसु
  • ह-हे-हो-डा पुष्य, 
  • डी-डु-डे-डो आश्लेषा, 
  • मा-मी-मू-मे मघा, 
  • मो-टा-टी-टू पूर्वा फाल्गुनी, 
  • टे-टो-प-पि उत्तराफाल्गुनी, 
  • पू-ष-ण-ठ हस्त, 
  • पे-पो-रा-रि चित्रा, 
  • रू-रे-रो-ता स्वाती, 
  • ती-तु-ते-तो विशाखा, 
  • ना-नी-नू-ने अनुराधा, 
  • नोयायीयु ज्येष्ठा, 
  • ये-यो-भ-भि मूल, 
  • भू-ढ़-फा-डा पूर्वाषाढा, 
  • भे-जो-जा-जि उत्तराषाढा, 
  • जू-जे-जो-खा अभिजित्, 
  • खी-खू-खे-खो श्रवण, 
  • गा-गी-गू-गे धनिष्ठा, 
  • गो-सा-सी-सू शतभिषा, 
  • से-सो-द-दि पूर्वाभाद्रपदा, 
  • दू-थ-झ-ञ उत्तराभाद्रपदा, 
  • दे-दो-च-चि रेवती

शतपद चक् (शिशुबोध:)

चित्र-1 

मो मे मु मि
वि कि हि डी टो टे टु टी
वु कु घ ङ छ हु डु पो पे पू ष ण ठ पि
वे के हे डे रो रे रू रि
वो को हो डो तो ते तु ति
लि लु ले लो खो जो भो यो नो
चि चु चे चो खे जे भे ये ने
दि दू थ झ ञ दे दो खु जु भू धा फा ढा यु नु
सि सु से सो खि जि भि यि नि
गि गु गे गो

न प्रोक्ता डञणा वर्णा नामादो सन्ति ते न हि ।
चेद्भवन्ति  तदा   ज्ञेयं   तदादिर्नाम  एव  हि ॥ 

राशिचक्रम् ( शिशुबोध:)

चित्र-2

चरण चु चे चो ला ली लु ले लो अ इ उ ए ओ वा वी वु वे वो का कि कु घ ङ छ के को ह हि
नक्षत्र अश्विनी-४ भरणी-४ कृतिका-१,३ रोहिणी-४ मृगशिरा-२,२ आर्द्रा-४ पुनर्वसु-३,१
राशि मेष मेष मेष,वृष वृष वृष,मिथुन मिथुन मिथुन,कर्क
चरण हू हे हो डा डी डु डे डो मा मी मू मे मो टा टी टू टे टो प पि पू ष ण ठ पे पो रा रि
नक्षत्र पुष्य-४ आश्लेषा-४ मघा-४ पूर्वा-फा.-४ उ.-फा.-१,३ हस्त-४ चित्रा-२,२
राशि कर्क कर्क सिंह सिंह सिंह,कन्या कन्या कन्या,तुला
चरण रु रे रो ता ती तू ते तो ना नी नू ने नो या यी यु ये यो भ भि भू धा फा ढा भे भो ज जि
नक्षत्र स्वाति-४ विशाखा-३,१ अनुराधा-४ ज्येष्ठा-४ मूल-४ पूर्व-षा.-४ उ.-षा.-१,३
राशि तुला तुला-वृश्चिक वृश्चिक वृश्चिक धनु धनु धनु-मकर
चरण जु जे जो खा खी खू खे खो ग गी गू गे गो सा सी सू से सो द दि दू थ झ ञ दे दो च चि
नक्षत्र अभिजित श्रवण-४ धनिष्ठा-२,२ शतभिषा-४ पू.भाद्रपद-४ उ.भाद्रपद-३,१ रेवती-४
राशि मकर मकर,कुम्भ कुम्भ कुम्भ,मीन मीन मीन

नाम कभी-कभी संयुक्ताक्षरों से भी रखे जाते हैं, उनमें आदि अक्षर से ही राशि का ग्रहण करें। जैसे- ज्ञानेश्वर (ज् + व् + आ = ज्ञा), क्षेत्रेश (क्+ष+ ए ), त्रिभुवन (त् + र् + इ ) इत्यादि ।

राशीनां परिचय:


अश्विनी-भरणी-कृत्तिकानां पादे मेषः ।
कृत्तिकायास्त्रयः पादारोहिणी मृगशिरोऽर्धि॑ वृषः।
मृगशिरोऽर्धमार्द्रा पुनर्वसुपादत्रयं मिथुनः ।
पुनर्वसुपादमेकं पुष्याऽऽश्लेषान्तं कर्कः ।
मघा च पूर्वाफाल्गुन्युत्तरापादे सिंहः ।
उत्तरापास्त्रयः पादा हस्तचित्रार्धं कन्या ।
चित्रार्धं स्वाति विशाखा पाद त्रयं तुला ।
विशाखापादमेकमनुराधाज्येष्ठान्तं वृश्चिकः ।
मूलञ्च पूर्वाषाढोत्तरापादे धनुः ।
उत्तरायास्त्रयः पादाः श्रवणधनिष्ठारर्धं मकरः ।
धनिष्ठार्धं शतभिषा- पूर्वाभाद्रत्रयं कुम्भः |
पूर्वाभाद्रपदापाद मेकमुत्तराभाद्रपदारेवत्यन्तं मीनः ।

इसका अर्थ चित्र संख्या ( २ ) के चक्र द्वारा स्पष्ट हो जाता है।

नक्षत्रो का देवता

अश्वो यमो नलो ब्रह्मा शशी रुद्रोऽदितिर्गुरुः ।
सर्पः पिता भगश्चैव अर्यमा च दिवाकरः ॥ ७ ॥
त्वष्टा वायुश्च शक्राग्नी मैत्रञ्चैव पुरन्दरः ।
निर्ॠतिः सलिलं चैव विश्वेदेवा हरिस्तथा ॥ ८ ॥
वसवो वरुणश्चैव अजपादस्तथैव च।
अहिर्बुध्न्यस्तथा पूषा क्रमान्नक्षत्रदेवताः ॥ ९ ॥

अन्वयः - अश्वः, यमः, अनलः, ब्रह्म, शशि, रुद्रः, आदितिः, गुरुः, सर्पः, पिता, भगः, अर्यमा, दीवाकरः, त्वष्टा, वायुः, शक्रग्नी, मैत्रं, पुरन्दर, निर्ऋति, सलिलं, विश्वदेवः और हरिः, वसवः,वरूणः , अजपादः, अहिर्बुध्न्यः और पूषा एताः क्रमात् देवताः स्युः ७-९ ।।

हिन्दी-अश्विनी आदि २७ नक्षत्रों के क्रमशः २७ देवता ऊपर कहे गये हैं। क्रम से समझ लें। केवल प्रथम अश्वः का अर्थ अश्विनीकुमार होगा, विशाखा नक्षत्र के शक्र और अग्नि-ये दो देवता होते हैं। अन्य सभी नक्षत्र के १-१ देवता हैं, शेष आगे चक्र में देखें ।। ७-९ ।।

नक्षत्र-स्वामी


पूर्वादिदिक्षु चन्द्रवास:


मेषे च सिंह धनु धनुषीन्द्रभागे वृष च कन्यामकरे च याम्ये।
युग्मे तुलायां च प्रतीच्यां कर्कालिमीने दिशि चोत्तरस्याम्
॥१०॥
अन्वयः- इंद्राभागे मेषे सिंहे धनुषि च, याम्ये वृष कन्यामकरे च, प्रतिच्यां ।

युग्मे तुलायां घटे च, उत्तरस्यां दिशि कर्कालिमीने ( चन्द्रवासः भवति ) ॥१०॥
हिन्दी – मेष, सिंह, धन का चन्द्रमा पूर्व में, वृष, कन्या, मकर का दक्षिण में, मिथुन, तुला, कुम्भ का पश्चिम में और कर्क, वृश्चिक, मीन का उत्तर में रहता है ।। १० ।।

शिशुबोधः

यात्रायां चन्द्र विचारः


सम्मुखस्थेऽर्थलाभः स्याद् दक्षिणे सुख सम्पदौ ।
पृष्टे च शोकसन्तापौ वामे चंद्रे धनक्षयः । 11..

अन्वयः-सम्मुखस्थे चंद्रे अर्थलाभः स्याद दक्षिणे सुखसम्पदौ पृष्ठे च शोसंतापौ वामे धनक्षयः (स्यात्) 11

हिन्दी-यात्रा के समय चन्द्रमा सामने की ओर हो तो धन-लाभ, दक्षिण में हो तो सुख और सम्पत्ति, पीछे की ओर होने पर शोक और सन्ताप तथा बायीं ओर चन्द्रमा हो तो धन का नाश होता है ।। ११ ।।

चन्द्रवर्णज्ञानं तत्फलञ्च


चालौ मेषसिंहे रुणोयुद्धकारी वृषेकर्कटे तौलिकेश्वेत सिद्धिः । धनुर्मिन युग्मेषु पीतोऽथ लक्ष्मीमकर-कुंभ-कन्या-शशी-श्याममृत्युः ॥ १२॥

अन्वयः-अलौ मेष सिंहे च (राशौ) अरुणः, युद्धकारी (भवति), वृषे कर्कटे तौलिके श्वेतवर्णाः, सिद्धिः (फलं), धनुर्मीन युग्मेषु पत्तत, लक्ष्मीः, मकर कुम्भ-कन्या (स्थ:) शशी श्यामः (फलं) मृत्युः ॥ १२॥

हिन्दी – वृश्चिक, मकर, सिंह राशि के चन्द्रमा का लाल वर्ण होता है, यह यात्रा में युद्धकारक होता है। वृष, कर्क, तुला राशि के चन्द्रमा का श्वेत वर्ण होता है, यह यात्रा में सिद्धिदायक होता है। धनु, मीन, मिथुन के चन्द्रमा का पीत वर्ण होता है, यह यात्रा में लक्ष्मीदायक होता है और मकर, कुम्भ, कन्या राशि के चन्द्रमा का श्याम वर्ण होता है; यह यात्रा में मृत्युदायक होता है, अतः निषिद्ध है। इस श्लोक का चौथा चरण छन्द की दृष्टि से अशुद्ध है ॥ १२ ॥

दग्धास्तिथयः


द्वितीय च धनुरमीने चतुर्थी वृषकुंभयोः ।
मीनकर्कटयोः षष्ठी कन्या मिथुनगाष्टमी ॥१३॥
दशमी वृश्चिक सिंहे द्वादशी मकरे तुले ।
एतास्तु तिथयो दग्धाः शुभे कर्मणि: वर्जिताः ॥१४॥

अन्वयः- धनुर्मीने द्वितीय , वृषकुंभयोश्चतुर्थी, मीनकर्कयोः षष्ठी, कन्या मिथुनगा अष्टमी, सिंहे वृश्चिक दशमी, मकरे तुले द्वादशी, ऐताः दग्धास्ति ययः शुभे कर्मणि वर्जिता स्युः
॥१३-१४॥

हिन्दी–धनु, मीन के चन्द्रमा के दिन द्वितीया तिथि, वृष, कुम्भ के चन्द्रमा के दिन चतुर्थी तिथि, मेष, कर्क के चन्द्रमा के दिन पष्ठी तिथि, मिथुन कन्या के चन्द्रमा के दिन अष्टमी तिथि, सिंह, वृश्चिक के चन्द्रमा के दिन दशमी तिथी और तुला, मकर के चन्द्रमा के दिन द्वादशी तिथि दग्ध होती है। पूर्वोक्त सभी दग्धा तिथियाँ शुभ कर्मों में वर्जित होती हैं ।। १३-१४ ।।

तिथिवारयोगोत्य निषिद्ध फलम्


द्वादश्यर्कयुता भवेन्न शुभदा सोमेन चैकादशी।
भौमेनाऽपि युत तथैव दशमी नेष्टा तृतीया बुद्धे ॥१५॥
षष्ठी नेस्तफलप्रदा गुरुदिने शुक्रे द्वितीया यथा।
सर्वारम्भविनाशनस्य जननी सूर्यात्मजे सप्तमी ॥१६ ॥

अन्वय:-अर्कयुता द्वादशी, सोमेन एकादशी, अपि भौमेन युत दशमी, बुधे तृतीया, गुरुदिने षष्ठी इष्टफलप्रदा न, तथा शुक्रे द्वितीया, सूर्यात्मजे सप्तमी सर्वरम्भविनाशस्य जननी भवती 
॥१५-१६॥

हिन्दी - रविवार को द्वादशी, सोमवार को एकादशी, मङ्गल को दशमी, बुधवार को तृतीया, गुरुवार को षष्ठी इष्टफलदायक नहीं होती तथा शुक्रवार को द्वितीया और शनिवार को सप्तमी हो तो कोई कार्य आरम्भ नहीं करना चाहिए,क्योंकि इन योगों में आरम्भ किया कार्य सिद्ध नहीं होता ॥१५-१६॥

मृत्युयोगः


त्याग रविमनुराधे वैश्वदेवश्व सोमे
• शतभिषमपि भौमे चंद्रज॔ चाश्विनीषु ।
मृगशिरसि सुरेज्यं सर्वदेवञ्च शुक्रे
• रवि सुतमपि हस्ते मृत्युयोगा भवन्तु ॥१७॥

अन्वय:- अनुराधे रविं, सोमे वैश्वदेवं अपि, भौमे शतभिषम्, अश्विनीषु चंद्रजम्, मृगशिरसी सुरेज्म्, सर्वदेवं शुक्रे, हस्ते रविसुतम् आपि त्यज, एते मृत्यु योगा: भवन्ति ॥१७॥

हिन्दी - रविवार को अनुराधा, सोमवार को उत्तराषाढा, मंगलवार को आश्लेषा और शनिवार को हस्तनक्षत्र का संयोग होने से मृत्युयोग होता है। उनको सभी कार्यों में वर्जित करें
॥१७॥


1 टिप्पणियाँ

आपका मंगल हो, प्रभु कल्याण करे

एक टिप्पणी भेजें
और नया पुराने