कलश पूजन विधि : Kalash Ganesh Pujan

सर्ब प्रथम स्नानादि से निवृत्त हो कर पुजन स्थल पर आये और सभी श्रेष्ट जनो को कुल देवता, ग्राम देवता और इष्ट देवता पितरों को प्रणाम आदि करके अपने आसन पर बैठे आचमण प्राणायाम अंगन्यास करके मंत्रो द्वार शरीर मन की शुद्धि करे। और उसके उपरांत पूजन प्रारम्भ करें ।

कलश पूजन : Kalash Pujan
कलश पूजन : Kalash Pujan

कलश गणेश पूजन धन, समृद्धि, आरोग्य और सौभाग्य को बढ़ाने के लिए विशेष रूप से की जाती है। इस पूजा के द्वारा शुभ कार्यों में सफलता प्राप्त की जा सकती है और संतान सुख में भी उन्हें लाभ मिलता हैं।

यह पूजा भगवान गणेश की कृपा प्राप्ति के लिए भी की जाती है और आपके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं।

कलश गणेश हिंदू धर्म में एक प्रसिद्ध पूजा विधि है जिसमें एक कलश में जल भरकर उसमें गणेश जी की मूर्ति स्थापित की जाती है। यह पूजा विधि धन, समृद्धि, सौभाग्य और  के लिए की जाती हैं।

इस पूजा के द्वारा शुभ कार्यों में सफलता प्राप्त की जा सकती है और संतान सुख में भी उन्हें लाभ मिलता हैं।

कलश प्रार्थना मंत्र:-

भूमि स्पर्श करें-

ॐ भूरसि भूमिरस्यदितिसि विश्वधाया विश्वस्य भुवनस्य धर्त्री । पृथिवीं यच्छ पृथिवींदृ र्ठ ह पृथिवीं माहि र्ठ सीः ॥१॥
ॐ महीद्यौः पृथिवी च न इमं यज्ञं मिमिक्षताम् पिपृतान्नो भरीमभिः।

सप्तधान्य कलश के नीचे डालें- कलश के नीचे धान्य के हाथ लगावें ।

ॐ धान्यमसि धिनुहि देवान् प्राणायत्वो दानायत्वा व्यानात्वा ।
दीर्घामनु प्रसितिमायुषे धान देवो वः सविता हिरण्यपाणिः प्रतिगृहभ्णा त्वच्छिद्रेण पाणिना चक्षुषेत्वा महीनाम्पयोऽसि ॥

कलश के नीचे धान्य के हाथ लगावें ।

ओषधयः समवदन्त सोमेन सहराज्ञा ।
यस्मै कृणोति ब्राह्मणस्त र्ठ राजन् पारयामसि ॥

फिर कलश स्थापना करें या कलश के हाथ लगाये।

ॐ आजिघ्र कलशंमह्या त्वा विशन्त्विन्दवः।
पुनर्जा निवर्त्तस्वसानः सहस्रं धुक्ष्वोरुघारा पयस्वती पुनर्माविशताद्रयिः॥

कलश में जल भरें - ॐ वरुणस्योत्तम्भनमसि वरुणस्य स्कम्भ सर्जनीस्थो वरुणस्य ऋत सदन्यसि वरुणस्य ऋत सदनमसि वरुणस्य ऋतसदनमासीद ॥

कलश को हाथ लगाकर मंत्र पढ़ें - ॐ आकलेशु धावति पवित्रे परिषिच्यते उक्थैर्यज्ञेषु वर्धते

तीर्थजल- इमंमे यमुने सरस्वति शुतुद्रिस्तोमं सचतापरुष्णया ।
असिकन्या मरुद्वृथे वितस्तयार्जीकीये शृणुह्यासुषो मया॥

सर्वोषधि डालें- या: ओषधी : पूर्वाजाता देवभ्यस्त्रियुगं पुरा।
मनैनु बभ्रूणामह र्ठ शतं धामानि सप्त च॥

चंदनं लगाए - ॐ गंधद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम्
ईश्वरी सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥

पंचपल्लव- ॐ अश्वत्थेवो निषदनं पर्णे वो वसतिष्कृता। गोभाज इत्किलासथ यत्सनवथ पूरुषम् ॥

दूर्वा (दुब)-

ॐ दूर्वेह्यमृत संपन्ने शतमूले शतांकुरे । शत पातक सहन्त्री शतमायुष्य वर्धिनी॥
ॐ काण्डात् काण्डात् प्ररोहन्ती परुषः परुषपरि । एवानो दूर्वे प्रतनु सहस्रेण शतेन च ॥२॥

कुशा अर्पित करें-

ॐ पवित्रस्थो वैष्णव्यौ सवितुर्व: प्रसव उत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभिः। तस्यते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत्कामः पुनेतच्छकेयम्।

सप्तमृतिका प्रदान करें-

ॐ स्योना पृथिवी नो भवानृक्षरा निवेशनी। यच्छा नः शर्म सप्रथाः ॥

पूगीफल (सुपारी)-

ॐ या फलिनीर्या अफला अपुष्पा याश्च पुष्पिणी। बृहस्पतिः प्रसूतास्तानो मुञ्चत्व र्ठ हसः॥
ॐ उतस्मास्यद्रवतस्तुरण्यत्तः पर्णन्नवेरनुवाति प्रगर्द्धिनः । श्येनस्ये वजतोऽ अंक संपरिदधि क्राव्णः सहोर्जातरित्रतः स्वाहा ॥2॥

पंचरत्न -

ॐ सहिररण्यनानि दाशुषेसुवातिसविता भगः। तं भागं चित्रमीमहे ॥
ॐ परिवाजपतिः कविरग्नि हव्यान्य क्रमीत । हिरण्यप्रेक्षण-दधद्रनानि दाशुषे ॥

हिरण्य (द्रव्य दक्षिणा)

ॐ हिरण्य गर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत् ।
सदाधार पृथिवीन्द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषाविधेम॥ ॐ हिरण्य रूपः सहिरण्य सहगयान्नयात्सेदु हिरण्यवर्णः। हिरण्य यात्परियोने निषद्या हिरण्यदा ददत्यन्तमस्मै ।

लाल वस्त्र सूत्र (मांगलिक सूत्र) बांधे-

युवा सुवासाः परिवीतऽआगात्स ऽउश्रेयान् भवति जायमानः।
तं धीरा सः कवय ऽउन्नयन्ति स्वाध्योमनसा देवयन्तः ॥
ॐ सुजातो ज्योतिषा सह शर्म वरूथमादत्स्वः।
वासो अग्ने विश्वरूप र्ठ सव्ययस्वः विभावसो॥

पूर्णपात्र चावल से भरकर पूर्णपात्र कलश पर रखें।

ॐ पूर्णादर्विपरापत सुपूर्णा पुनरापत।
वस्नेव विक्रीणाबहा ऽइषमूर्ज र्ठ शतक्रतो॥

इसके बाद नारियल पर मोली या लाल वस्त्र लपेट कर  पूर्णपात्र पर रखें।

ॐ श्रीश्चते लक्ष्मीश्च पल्यावहोरात्रे पार्श्वे नक्षत्राणि रूपमश्विनौ व्यात्तम्। इष्णन्निषाणा मुम्मइषाण सर्वलोकम्मइषाण॥

कलश पर वरुण का ध्यान कर आवाहन और पूजन करें।

ॐ अस्य तत्वायामीत्यस्य शुनः शेष ऋषि त्रिष्टुप्छन्दः वरुणो देवतावाहने विनियोगः।

ॐ तत्वायामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदाशास्ते यजमानो हविर्भिः ।
अहेडमानो वरुणे हवोद्धयुरुश र्ठ समान आयुः प्रमोषीः॥

अस्मिन् कलशे वरुणं साङ्गं सपरिवारं सायुधं सशक्तिकमावाहयामि। ॐ भूर्भुवः स्वः भो वरुण ! इहागच्छ, इह तिष्ठ, स्थापयामि, पूजयामि, मम पूजां गृहाण । ॐ अपां पतये वरुणाय नमः। (कहकर अक्षत- पुष्प कलशपर छोड़ दे।)

फिर हाथमें अक्षत-पुष्प लेकर चारों वेद एवं अन्य देवी-देवताओंका आवाहन करे-

कलशस्य मुखे विष्णुः कण्ठे रुद्रः समाश्रितः ।
मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताः॥
कुक्षौ तु सागराः सर्वे सप्तद्वीपा वसुन्धरा ।
ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेदः सामवेदो थर्वणः॥
अङ्गैश्च सहिताः सर्वे कलशं तु समाश्रिताः।
अत्र गायत्री सावित्री शान्तिः पुष्टिकरी तथा॥
आयान्तु देवपूजार्थं दुरितक्षयकारकाः।
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धुकावेरि जलेऽस्मिन् संनिधिं कुरु॥
सर्वे समुद्राः सरितस्तीर्थानि जलदा नदाः।
आयान्तु मम शान्त्यर्थं दुरितक्षयकारकाः॥

जलाधिपति वरुणदेव तथा वेदों, तीर्थो, नदों, नदियों देवी देवताओं के आवाहनके बाद हाथ में अक्षत पुष्प लेकर निम्नलिखित मन्त्रसे कलशकी प्रतिष्ठा करे-

ॐ मनोजूतिर्जुषता माज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तन्नोत्वरिष्टं यज्ञॅं$ , समिमं दधातु । विश्वे देवास इह मादयन्तामो३ प्रतिष्ठ :॥ ऊँभूर्भुवः स्वः कलश गणेश वरुण सहित आवाहित देवानांभ्यो नमो नमः।

तदुपरांत वरुण देव का दशोपचार पूजन करें। वरुण पूजन विधि के लिय नीचे दिये गये page पर जाये  

आपका मंगल हो, प्रभु कल्याण करे

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