स्वस्ति वाचन (मंगल पाठ) करना हमारे स्वस्थ विचारों और भावनाओं को संतुष्टि और स्थिरता प्रदान करता है। जो पूजन के समय हमारे मन और शरीर को स्थिर बनाये रखता हैं। (मंगल पाठ) से हमारे मन में शांति पैदा होती है, जो हमारी मन और ध्यानशीलता को बढ़ाने में मदद करती है। स्वस्ति वाचन (मंगल पाठ) हमारे स्वास्थ्य और स्वभाव से संबंधित होती है और हमारी शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक सुख को सुन्दर बनाती है। इसलिए, पूजन से पहले स्वस्ति वाचन (मंगल पाठ) करना जरूरी होता है।
स्वस्ति वाचन (मंगलपाठ)
हम सभी जो पूजा पाठ धार्मिक कर्म उपासना में विश्वास रखते हैं। प्रतिदिन आरती पूजा पाठ जाप आदि करते हैं। हम सभी के लिए यह जानना अति आवश्यक है कि, हर पूजन से पहले यह स्वस्ति वाचन "मंगल पाठ" करना चाहिए। क्योकि यह मंगल पाठ सभी देवी-देवताओं की शक्तियों और हमारे भक्तिभाव और श्रद्धा को जाग्रित करता है। जिससे पूजन का संपूर्ण फल की प्राप्ति होती हैं।
स्वस्ति वाचन के नियम-
1- स्वस्ति वाचन प्रत्येक देव कर्म, धार्मिक कर्म, मांगलिक कर्म करना अनिवार्य हैं। इससे मन की शुद्धि होती हैं।
2- सर्व प्राथम स्नान आदि से निवृत होकर एक आसनी पर बैठ जाएं आचमन, प्राणयाम आदि करें ।
3- पूजन जल पात्र के जल में गंगाजल मिश्रित करें। जल पात्र का स्पर्श करते हुए माँ गंगा का आवाह्न और ध्यान करें।
4- जलपात्र से थोड़ा जल दाहिने हाथ में ले मन और शरीर शुद्धि के लिए शरीर शुद्धिकरण मंत्र पढ़ें जल को अपने शरीर पर छोड़ दें।
5- दाहिने हाथ से शिखा स्पर्श (शिखा बंधना) करते हुए शिखा बंधन मंत्र पढ़ें।
6- पुनः दाहिने हाथ में जल लेते हुए आसान शुद्धिकरण मंत्र पढ़ें और जल को आसान के करीब छोड़ दें। पृथ्वी माता का स्पर्श करके प्रणाम करें।
7- पुनः दाहिने हाथ में जल लेते हुए दिशा शुद्धिकरण मंत्र पढ़ें और दशों दिशाओं में छोड़ दें।
8- एक दीपक प्रज्ज्वलित करें घी का दीपक को दाहिने अगर तेल का दीपक हों तो बायें पुष्प (फूल) और अक्षत हाथ में लेकर दीपक ध्यान मंत्र से आव्हान करें।
शान्ति पाठ "मंगल पाठ"
ॐ शांति: शांति: शांति: सुशान्ति: भवतु सर्वारिष्ट शान्ति भवतु । ॐ लक्ष्मीनारायणाभ्यां नम: । ॐ उमामहेश्वराभ्यां नम: । वाणी हिरण्यगर्भाभ्यां नम: । ॐ शचीपुरन्दराभ्यां नम: । ॐ मातापितृ चरण कमलभ्यो नम:। ॐ गुरुजन चरण कमलभ्यो नम: । ॐ इष्टदेवाताभ्यो नम: । ॐ कुलदेवताभ्यो नम: । ॐ ग्रामदेवताभ्यो नम:। ॐ स्थान देवताभ्यो नम:। ॐ वास्तुदेवताभ्यो नम:। ॐ एतत् कर्म प्रधान देवताभ्यो नमः । ॐ सर्वेभ्यो ऋषिभ्यो नमः । ॐ सर्वेभ्यो तीर्थेभ्यो नमः । ॐ सर्वे देवेभ्यो नम: । ॐ सर्वेभ्यो ब्राह्मणोभ्यो नम: । ॐ सिद्धि बुद्धि सहिताय श्रीमन्महा गणाधिपतये नम: ।